बर्बरीक (Barbarika): महाभारत का अदृश्य महान योद्धा

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परिचय

महाभारत, भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें अनेक वीर योद्धाओं की कहानियाँ वर्णित हैं। इनमें से एक ऐसा योद्धा भी था, जो युद्ध में तो शामिल नहीं हुआ, लेकिन उसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। यह योद्धा था बर्बरीक (Barbarika), जिसे आज खाटू श्याम जी के नाम से पूजा जाता है। उनकी कथा त्याग, भक्ति और न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।

बर्बरीक (Barbarika) का जन्म और वंश

बर्बरीक का जन्म महाबली भीम के पुत्र घटोत्कच और नागकन्या मौरवी के पुत्र के रूप में हुआ था। उनकी माता मौरवी, नागराज वासुकी की पुत्री थीं। बर्बरीक ने युद्ध कला का प्रशिक्षण अपनी माता से प्राप्त किया और देवी माँ की तपस्या करके तीन दिव्य बाण प्राप्त किए। Wikipedia

तीन बाणों की शक्ति

बर्बरीक के पास तीन ऐसे बाण थे, जो अद्वितीय शक्तियों से युक्त थे:

  1. पहला बाण शत्रु को चिन्हित करता था।
  2. दूसरा बाण उन चिन्हित शत्रुओं को नष्ट करता था।
  3. तीसरा बाण वापस तरकश में लौट आता था।

इन बाणों की सहायता से बर्बरीक किसी भी युद्ध को पल भर में समाप्त कर सकते थे।

धीर warriors का संग्राम
तीन बाणों की शक्ति

महाभारत युद्ध में भाग लेने की इच्छा

जब महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने वाला था, तब बर्बरीक (Barbarika) ने अपनी माता से वचन लिया था कि वे सदैव हारे हुए पक्ष का साथ देंगे। इस वचन के साथ वे कुरुक्षेत्र की ओर प्रस्थान कर गए।

श्रीकृष्ण के साथ संवाद और परीक्षा

श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण के वेश में बर्बरीक से उनकी शक्ति की परीक्षा ली। उन्होंने बर्बरीक से पूछा कि वे युद्ध को कितने समय में समाप्त कर सकते हैं। बर्बरीक ने उत्तर दिया कि वे मात्र एक पल में युद्ध समाप्त कर सकते हैं।

श्रीकृष्ण ने उनकी बात की परीक्षा लेने के लिए उन्हें पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को एक बाण से भेदने को कहा। बर्बरीक ने एक बाण से सभी पत्तों को भेद दिया, जिसमें श्रीकृष्ण के पैर के नीचे छिपा पत्ता भी शामिल था।

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श्रीकृष्ण के साथ संवाद और परीक्षा

शीश दान और बलिदान

श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि वे किस पक्ष का साथ देंगे। बर्बरीक (Barbarika) ने उत्तर दिया कि वे हारे हुए पक्ष का साथ देंगे। श्रीकृष्ण ने समझाया कि उनकी उपस्थिति से युद्ध का संतुलन बिगड़ जाएगा, और अंततः केवल वे ही शेष रह जाएंगे।

इस स्थिति से बचने के लिए, श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश दान में मांगा, जिसे बर्बरीक ने सहर्ष स्वीकार किया। उन्होंने अनुरोध किया कि वे युद्ध को अंत तक देखना चाहते हैं, जिसे श्रीकृष्ण ने स्वीकार किया।

खाटू श्याम जी के रूप में पूजा

बर्बरीक (Barbarika) का शीश राजस्थान के सीकर जिले के खाटू नगर में दफनाया गया। कहा जाता है कि एक गाय ने उस स्थान पर दूध बहाया, जिससे वह स्थान प्रकट हुआ। उस स्थान को “श्याम कुंड” कहा जाता है।

राजा रूपसिंह चौहान की पत्नी नर्मदा कंवर को स्वप्न में आदेश मिला कि उस स्थान पर मंदिर बनवाया जाए। इसके बाद वहाँ एक भव्य मंदिर का निर्माण हुआ, जहाँ आज भी खाटू श्याम जी के रूप में बर्बरीक की पूजा होती है।

खाटू श्याम मंदिर और महत्त्व

खाटू श्याम मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है। यह मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है और इसकी दीवारों पर पौराणिक चित्र बने हुए हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर चांदी की परत चढ़ी हुई है।

मंदिर परिसर में “श्याम कुंड” नामक एक पवित्र तालाब है, जहाँ भक्त स्नान करके अपने कष्टों से मुक्ति पाते हैं। यहाँ हर वर्ष फाल्गुन मास में एक भव्य मेला आयोजित होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।

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खाटू श्याम मंदिर और महत्त्व

निष्कर्ष

बर्बरीक (Barbarika) की कथा हमें सिखाती है कि सच्चा बलिदान वही होता है, जो दूसरों के कल्याण के लिए किया जाए। उनकी भक्ति, त्याग और न्यायप्रियता हमें जीवन में सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। आज भी वे हारे का सहारा और शीश के दानी के रूप में पूजे जाते हैं।

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