Tuesday, October 22, 2024
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|| श्री दुर्गा चालीसा(Shri Durga Chalisa) ||

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दुर्गा चालीसा(Durga Chalisa)

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुंलोक में डंका बाजत॥

शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ संतन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपू मुरख मौही डरपावे॥

शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला॥

जब लगि जिऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

“नवरात्र के नौ दिनों तक माँ दुर्गा की सभी मनोरथ को पूरी करने वाली श्रीदुर्गा चालीसा का पाठ करने से शत्रुओं से मुक्ति, इच्छा पूर्ति सहित अनेक कामनाएं पूरी हो जाती है।”

लक्ष्मीजी की आरती:Lakshmi Ji Ki Aarti

॥ लक्ष्मीजी की आरती:Lakshmi Ji Ki Aarti ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता ॥
॥ ॐ जय लक्ष्मी माता…. ॥

उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जगमाता, मैया तुम ही जगमाता ।
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥
॥ ॐ जय लक्ष्मी माता…. ॥

दुर्गा रूप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता, मैया सुख सम्पत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥
॥ ॐ जय लक्ष्मी माता…. ॥

तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभदाता, मैया तुम ही शुभदाता ।
कर्मप्रभावप्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता ॥
॥ ॐ जय लक्ष्मी माता…. ॥

जिस घर में तुम रहती हो, ताँहि सद्गुण आता, मैया ताँहि सद्गुण आता ।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता ॥
॥ ॐ जय लक्ष्मी माता…. ॥

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता, मैया वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥
॥ ॐ जय लक्ष्मी माता…. ॥

शुभ गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि जाता, मैया क्षीरोदधि जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ॥
॥ ॐ जय लक्ष्मी माता…. ॥

महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता, मैया जो कोई नर गाता ।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता ॥
॥ ॐ जय लक्ष्मी माता…. ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता ॥

॥ ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता…. ॥

|| गणेश चालीसा: Ganesh Chalisa ||

|| गणेश चालीसा: Ganesh Chalisa ||

॥ दोहा ॥

जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल ।

विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जय गणपति गणराजू । मंगल भरण करण शुभः काजू ॥

जय गजबदन सदन सुखदाता । विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥

वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना । तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥

राजत मणि मुक्तन उर माला । स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥

सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥

धनि शिव सुवन षडानन भ्राता । गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥

ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे । मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी । अति शुची पावन मंगलकारी ॥

एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥

अतिथि जानी के गौरी सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥

अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला । बिना गर्भ धारण यहि काला ॥

गणनायक गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥

अस कही अन्तर्धान रूप हवै । पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥

बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना । लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥

शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥

गिरिजा कछु मन भेद बढायो । उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥

कहत लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥

नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥

पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा । बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥

गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी । सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥

हाहाकार मच्यौ कैलाशा । शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥

चले षडानन, भरमि भुलाई । रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥

धनि गणेश कही शिव हिये हरषे । नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ॥

मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥

अब प्रभु दया दीना पर कीजै । अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥

॥ दोहा ॥

श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान । नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान ॥

सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश ।पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश ॥

हनुमान जी की आरती: Hanumaan Ji Ki Aarti

॥ हनुमान जी की आरती: Hanumaan Ji Ki Aarti ॥

॥ आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥

जाके बल से गिरवर काँपे, रोग-दोष जाके निकट न झाँके ।

अंजनि पुत्र महा बलदाई, संतन के प्रभु सदा सहाई ॥

॥ आरती कीजै हनुमान लला की…. ॥

दे वीरा रघुनाथ पठाए, लंका जारि सिया सुधि लाये ।

लंका सो कोट समुद्र सी खाई, जात पवनसुत बार न लाई ॥

॥ आरती कीजै हनुमान लला की…. ॥

लंका जारि असुर संहारे, सियाराम जी के काज सँवारे ।

लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे, लाये संजिवन प्राण उबारे ॥

॥ आरती कीजै हनुमान लला की…. ॥

पैठि पताल तोरि जमकारे, अहिरावण की भुजा उखारे ।

बाईं भुजा असुर दल मारे, दाहिने भुजा संतजन तारे ॥

॥ आरती कीजै हनुमान लला की…. ॥

सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें, जय जय जय हनुमान उचारें ।

कंचन थार कपूर लौ छाई, आरती करत अंजना माई ॥

॥ आरती कीजै हनुमान लला की…. ॥

लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।

जो हनुमानजी की आरती गावे, बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥

॥ आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥

Bajrang Baan: बजरंग बाण

॥Bajrang Baan: बजरंग बाण॥

॥ दोहा ॥
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान ॥

॥ चौपाई ॥
जय हनुमन्त सन्त हितकारी, सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।
जन के काज विलम्ब न कीजै, आतुर दौरि महा सुख दीजै।
जैसे कूदि सिन्धु महिपारा, सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।
आगे जाय लंकिनी रोका, मारेहु लात गई सुरलोका ।

जाय विभीषन को सुख दीन्हा, सीता निरखि परमपद लीन्हा ।
बाग उजारि सिन्धु महं बोरा, अति आतुर जमकातर तोरा ।
अक्षय कुमार को मारि संहारा, लूम लपेट लंक को जारा ।
लाह समान लंक जरि गई, जय जय धुनि सुरपुर में भई ।

अब विलम्ब केहि कारन स्वामी, कृपा करहु उर अन्तर्यामी ।
जय जय लखन प्राण के दाता, आतुर होय दु:ख करहु निपाता ।
जै गिरिधर जै जै सुख सागर, सुर समूह समरथ भटनागर ।
ॐ हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले, बैरिहि मारू बज्र की कीले ।

गदा बज्र लै बैरिहिं मारो, महाराज प्रभु दास उबारो ।
ॐ कार हुंकार महाप्रभु धावो, बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ।
ॐ ह्रिं ह्रिं ह्रिं हनुमन्त कपीसा, ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा ।
सत्य होहु हरि शपथ पायके, राम दूत धरु मारु जाय के ।

जय जय जय हनुमन्त अगाधा, दु:ख पावत जन केहि अपराधा ।
पूजा जप तप नेम अचारा, नहिं जानत हौं दास तुम्हारा ।
वन उपवन मग गिरि गृह माहीं, तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ।
पांय परौं कर जोरि मनावौं, येहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।

जय अंजनि कुमार बलवन्ता, शंकर सुवन वीर हनुमन्ता ।
बदन कराल काल कुल घालक, राम सहाय सदा प्रतिपालक ।
भूत, प्रेत, पिशाच निशाचर, अग्नि बेताल काल मारी मर ।
इन्हें मारु, तोहि शपथ राम की, राखउ नाथ मरजाद नाम की ।

जनकसुता हरि दास कहावो, ताकी शपथ विलम्ब न लावो ।
जै जै जै धुनि होत अकासा, सुमिरत होत दुसह दु:ख नाशा ।
चरन शरण कर जोरि मनावौं, यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।
उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई, पांय परौं कर जोरि मनाई ।

ॐ चं चं चं चं चपल चलंता, ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता ।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल, ॐ सं सं सहमि पराने खल दल ।
अपने जन को तुरत उबारो, सुमिरत होय आनंद हमारो ।
यह बजरंग बाण जेहि मारै, ताहि कहो फिर कौन उबारै ।

पाठ करै बजरंग बाण की, हनुमत रक्षा करै प्राण की ।
यह बजरंग बाण जो जापै, ताते भूत-प्रेत सब कांपै ।
धूप देय अरु जपै हमेशा, ताके तन नहिं रहै कलेशा ।

॥ दोहा ॥
प्रेम प्रतीतिहि कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान ॥

Shiv ji Aarti:शिव जी की आरती

Shiv ji Aarti:शिव जी की आरती

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
अक्षमाला वनमाला, मुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै, भाले शशिधारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
कर के मध्य कमंडल चक्र त्रिशूलधारी ।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये शोभित ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

|| ॐ जय जगदीश हरे आरती ||

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे…॥
जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का, स्वामी दुःख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे, सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे…॥
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी, स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा, तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे…॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी, स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर, पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे…॥
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता, स्वामी तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरख फलकामी, मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति, स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय, किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे…॥
दीन-बन्धु दुःख-हर्ता, ठाकुर तुम मेरे, स्वामी रक्षक तुम मेरे ।
अपने हाथ उठाओ, अपने शरण लगाओ, द्वार पड़ा मैं तेरे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे…॥
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा, स्वमी कष्ट हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा ॥
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे…॥

श्री गणेश जी की आरती

॥श्री गणेश जी की आरती॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥ जय…

एक दंत दयावंत चार भुजा धारी।

माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥ जय…

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।

बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जय…

हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।

लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥ जय…

दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।

कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥ जय…

‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा ।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥

||Hanuman Chalisa||

Hanuman Chalisa

॥ दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ॥


॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥ 1
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥ 2
महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥ 3
कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥ 4
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेउ साजै ॥ 5
शंकर सुवन केसरी नंदन । तेज प्रताप महा जगवंदन ॥ 6
बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥ 7
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥ 8
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥ 9
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥ 10
लाय सजीवन लखन जियाए । श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥ 11
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥ 12
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥ 13
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥ 14
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥ 15
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना । राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥ 16
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना । लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥ 17
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ 18
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥ 19
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥ 20
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥ 21
सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रक्षक काहू को डरना ॥ 22
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥ 23
भूत पिशाच निकट नहिं आवै । महावीर जब नाम सुनावै ॥ 24
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥ 25
संकट तै हनुमान छुडावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ 26
सब पर राम तपस्वी राजा । तिनके काज सकल तुम साजा ॥ 27
और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ॥ 28
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥ 29
साधु सन्त के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥ 30
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥ 31
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥ 32
तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥ 33
अंतकाल रघुवरपुर जाई । जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥ 34
और देवता चित्त ना धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥ 35
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥ 36
जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥ 37
जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ॥ 38
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥ 39
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥ 40

॥ दोहा ॥
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥