कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा: महाभारत की पौराणिक कहानी और कहावत की गहराई

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भूमिका

भारतीय समाज में कहावतें केवल मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि जीवन के अनुभवों से उपजी गूढ़ शिक्षाएं होती हैं। इन्हीं में से एक है: “कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा” (Kahin ki eent, kahin ka rooda, Bhanumati ne kunba joora) । यह कहावत अक्सर तब सुनने को मिलती है जब कोई व्यवस्था बिना किसी ठोस योजना या मेल के अस्तित्व में आ जाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस कहावत के पीछे भानुमति कौन थी और क्यों उसके नाम से यह कहावत जुड़ी हुई है?

इस लेख में हम न केवल इस कहावत का गहराई से विश्लेषण करेंगे बल्कि इसकी पौराणिक पृष्ठभूमि, विशेषकर महाभारत में भानुमति की भूमिका और उसके संबंध को विस्तार से समझेंगे।


कहावत का अर्थ और व्यावहारिक उपयोग

“कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा” का शाब्दिक अर्थ है — अलग-अलग, असंबंधित चीज़ों को जोड़ना। “भानुमति ने कुनबा जोड़ा” — इसका अर्थ है किसी ने इन बेमेल चीज़ों को जोड़कर एक व्यवस्था या समूह खड़ा कर दिया।

इसका उपयोग आमतौर पर नकारात्मक रूप में होता है, जब कोई टीम, योजना या व्यवस्था आपसी तालमेल के बिना बनाई जाती है। फिर भी, इस कहावत में एक रोचक व्यंग्य है — चाहे जैसी भी परिस्थिति हो, कुछ न कुछ बन ही जाता है।


भानुमति कौन थी? (महाभारत संदर्भ)

कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा
कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा

भानुमति, महाभारत के अनुसार, कौरवों के प्रमुख दुर्योधन की पत्नी थी। उसकी कथा कम चर्चित जरूर है, लेकिन वह भारतीय पौराणिक साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। भानुमति का उल्लेख स्पष्ट रूप से महाभारत में कम होता है, लेकिन पुराणों और बाद की लोककथाओं में उसका ज़िक्र मिलता है।

भानुमति और कर्ण की कथा

एक प्रसिद्ध प्रसंग है जिसमें दुर्योधन और कर्ण पासे (जुए) का खेल खेल रहे होते हैं। भानुमति वहां से गुज़र रही होती है और दुर्योधन उसे देखकर थोड़ा विचलित हो जाता है, जिससे कर्ण उसके गहनों को पकड़ लेता है। यह पूरी घटना भले ही संदिग्ध रही हो, लेकिन इस कहानी को आज तक ‘विश्वास’ और ‘दोस्ती’ के प्रतीक के रूप में बताया जाता है — कि भानुमति ने इसे बुरा नहीं माना और दुर्योधन ने भी कर्ण पर विश्वास बनाए रखा।


कहावत और भानुमति का संबंध

अब प्रश्न उठता है — भानुमति ने ऐसा क्या किया कि उसके नाम से यह कहावत जुड़ गई?

लोककथाओं की व्याख्या:

कुछ लोककथाओं में बताया गया है कि भानुमति एक ऐसी महिला थी जिसने विभिन्न जातियों, वर्गों और सोच के लोगों को अपने कुनबे में स्थान दिया। उसका कुनबा बेमेल था — कोई ब्राह्मण, कोई क्षत्रिय, कोई व्यापारी, कोई शूद्र — फिर भी वह उन्हें एक साथ रख सकी।

इसलिए कहा जाने लगा — “कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा।”

यह दरअसल सामाजिक समावेशिता का प्रतीक बन गया। भले ही यह असंगत प्रतीत हो, लेकिन भानुमति ने उसे एकजुट कर चलाया।

दूसरा दृष्टिकोण:

कुछ विद्वानों का मानना है कि यह कहावत भानुमति के जीवन की विडंबनाओं को दर्शाती है। उसे दुर्योधन जैसा स्वभाविक रूप से उग्र पति मिला, कर्ण जैसे संदेहास्पद दोस्त से नाता जुड़ा, और महाभारत जैसी महान लड़ाई का वह मूक दर्शक बनी। ऐसे में उसके जीवन की परिस्थिति ही इस कहावत की जननी बनी।


महाभारत और सामाजिक विडंबनाएं

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कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा

महाभारत केवल युद्ध और धर्म की कहानी नहीं है, यह मानव संबंधों, राजनीति, विश्वास और सामाजिक व्यवस्थाओं की जटिलताओं का महाग्रंथ है। भानुमति जैसी पात्रें, भले ही गौण हों, लेकिन उनके ज़रिये हम उस समय की स्त्री की स्थिति, उसके निर्णय, और उसके संघर्षों को समझ सकते हैं।

भानुमति की कहानी हमें यह भी बताती है कि जीवन हमेशा योजनाबद्ध नहीं होता — कई बार हमें अव्यवस्था से ही व्यवस्था बनानी पड़ती है। और यही इस कहावत की असली आत्मा है।


आधुनिक जीवन में कहावत की प्रासंगिकता

आज के समय में भी हम इस कहावत को बहुत से संदर्भों में देख सकते हैं:

  1. राजनीति: जब सरकारें असमान विचारधाराओं वाले दलों से मिलकर बनती हैं।
  2. कॉर्पोरेट दुनिया: जब अलग-अलग बैकग्राउंड के लोग एक प्रोजेक्ट पर काम करते हैं।
  3. परिवार: जब संयुक्त परिवार में विचारों का टकराव होता है, लेकिन परिवार फिर भी बना रहता है।
  4. शिक्षा और संस्थाएं: जहां शिक्षा नीतियां विभिन्न स्रोतों से उठाकर बनाई जाती हैं।

कहावत की भाषाई विशेषता

यह कहावत अलंकारिक भाषा का सुंदर उदाहरण है। इसमें उपमा और व्यंग्य दोनों हैं। “ईंट” और “रोड़ा” यहाँ प्रतीक हैं उन चीज़ों का जो आपस में मेल नहीं खाते, और “कुनबा जोड़ना” दर्शाता है असंभव को संभव बनाना।


निष्कर्ष: भानुमति की सीख

“कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा” — यह केवल एक व्यंग्यात्मक कहावत नहीं है, यह जीवन का वह सार है जिसमें हम अव्यवस्था में भी व्यवस्था ढूंढ़ते हैं।

भानुमति केवल एक पौराणिक पात्र नहीं बल्कि एक विचार है — समावेशिता, सहनशीलता और व्यावहारिकता का।

महाभारत की कहानी में भले ही उसकी भूमिका गौण रही हो, लेकिन उसकी यह कहावत बताती है कि अस्थिरता में स्थिरता लाना भी एक कला है

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